*पाप कहाँ-कहाँ तक जाता है?*
एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगाजी में पाप धोने जाते हैं तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगाजी में समा गए और गंगाजी भी पापी हो गईं!
अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है?
तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए।
ऋषि ने पूछा - भगवन, जो पाप गंगाजी में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है?
भगवन ने कहा - चलो, गंगाजी से ही पूछते हैं।
दोनों लोग गंगाजी के पास गए और उनसे कहा - हे गंगे! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुईं!
गंगाजी ने कहा - मैं क्यों पापी हुई? मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ।
अब वे लोग समुद्र के पास गए और उनसे बोले - हे सागर! गंगाजी जो पाप आपको अर्पित कर देती हैं तो इसका मतलब आप भी पापी हुए!
समुद्र ने कहा - मैं क्यों पापी हुआ? मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बनाकर बादल बना देता हूँ।
अब वे लोग बादल के पास गए, और उनसे बोले - हे बादलों! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते हैं तो इसका मतलब आप पापी हुए!
बादलों ने कहा - हम क्यों पापी हुए? हम तो सारे पापों को पानी के रूप में बरसाकर वापस धरती पर भेज देते हैं, जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है। उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है।
✒ शायद इसीलिये कहते हैं - *जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन*
अन्न को जिस वृत्ति (कमाई) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है वैसे ही विचार मानव के बन जाते हैं। इसीलिये सदैव भोजन शांत अवस्था में पूर्ण रुचि के साथ करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए वह धन भी श्रम का होना चाहिए। 🌺🌹🌺
जय श्री सीता राम
Jyothish Acharya Vipin Tiwari
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